देवनागरी | IAST | Kyoto-Harvard |
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अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयम् विद्यते तव भारति । व्ययतो वृद्धिमायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥ |
apūrvaḥ ko'pi kośo'yam vidyate tava bhārati | vyayate vṛddhimāyāti kṣayamāyāti sañcyāt || |
apUrvaH ko'pi kozo'yam vidyate tava bhArati | vyayate vRddhimAyAti kSayamAyAti saJcyAt || |
अ a |
आ ā A |
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ई ī I |
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ऌ ḷ lR |
ं ṃ M |
ः ḥ H |
क ka |
ख kha |
ग ga |
घ gha |
ङ ṅa Ga |
ह ha |
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च ca |
छ cha |
ज ja |
झ jha |
ञ ña Ja |
य ya |
श śa za |
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ट ṭa Ta |
ठ ṭha Tha |
ड ḍa Da |
ढ ḍha Dha |
ण ṇa Na |
र ra |
ष ṣa Sa |
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त ta |
थ tha |
द da |
ध dha |
न na |
ल la |
स sa |
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प pa |
फ pha |
ब ba |
भ bha |
म ma |
व va |